नीलकंठ

नीलकंठ
हिम के आँचल में
अपना राज बसाए हैं

विषधर नंदी साथ में
गौर संग बिठाए है

उज्जवल शशि ललाट पर,
गंगा है सर पर बैठी
हाथ त्रिशूल,
तन मृग छाला,
खड़े कई है भेटीं

श्वेताम्बर,श्याम हुआ ,
तन पे भस्म सजाये है
अमृत की सौगात
जग को देकर,
विष को लगा के कंठ से
वो नीलकंठ कहलाये हैं