thumbnail

भूल क्यों जाते हैं


Buy Now

बचपन की बातों को
बचपन को घातों को
हम भूल क्यों जाते है
बचपन के सपनों को
बचपन के अपनों को
हम भूल क्यों जाते हैं

जब जब लड़ते थे
हम भाई बहन देखो
तब माँ समझाती थी
माँ की उन बातियों को
हम भूल क्यों जाते हैं

नाराज़ हुए जब भी
बस यूँ मन जाते थे
कट्टी से मिट्ठी भी
बस यूँ बन जाते थे
आँखों की उन खुशियों को
हम भूल क्यों जाते हैं .....

#सुरभि

thumbnail

बोझ


Buy Now
कुछ बोझ
ऐसे भी होते हैं,
जिनका
असर ताउम्र रहे तो भी अच्छा

वो ऐसा हो ,
वैसा हो ,
कैसा भी हो,
बस साथ रहे वो भी अच्छा

अपना तो
कोई अस्तित्व
नही दीवार का ,
एक छत ही
उसे मकान बनाती हैं







मेरे हमदम का
मुझे मिल जाता साथ,
धरती सोचती है,
पर फिर ख्याल आता है उसे-

कुछ नहीं ....... न सही
मेरे सर पर
ये ठहरा हुआ आसमान भी अच्छा

thumbnail

नीलकंठ


Buy Now
नीलकंठ
हिम के आँचल में
अपना राज बसाए हैं

विषधर नंदी साथ में
गौर संग बिठाए है

उज्जवल शशि ललाट पर,
गंगा है सर पर बैठी
हाथ त्रिशूल,
तन मृग छाला,
खड़े कई है भेटीं

श्वेताम्बर,श्याम हुआ ,
तन पे भस्म सजाये है
अमृत की सौगात
जग को देकर,
विष को लगा के कंठ से
वो नीलकंठ कहलाये हैं




thumbnail

गुंचो की माला


Buy Now
कुछ पल है मेरे अपने
कुछ हैं पूरे
कुछ है सपने
उन सपनों को
चुन चुन कर
हम
एक एक मोती में ढालेंगे

हर मोती में छिपे दर्द को,
हँस हंस के हम छिपा गए
जिस ग़म से रिश्ता रखते थे,
उन से नाता छुड़ा लिया
जीवन की इस फ़ुलवारी में
प्यार का गुल है खिला लिया

सोचा था
इन गुंचों की माला को
प्यार से तेरे गले में डालेंगे
उन सपनों को
चुन चुन कर
हम
एक एक मोती में ढालेंगे





thumbnail

वफादार


Buy Now
वो बातों ही बातों में दिल को चुराते हैं
वो आँखों ही आँखों में अपना बनाते हैं




ये अदा है उनकी
या कोई शरारत
कहते है की पास हैं मेरे ,,
और छूने की चाहत से ही वो दूर चले जाते हैं

पराये हो गए वो,
जिन्हें हमराज़ कहते हैं
कभी न दूरियां देखीं,
जिन्हें हमसाज़ कहते हैं
अचानक
ये समय बदला,
बदले वो जिन्हें दिलसाज़ कहते हैं


बेवफ़ाई का ईनाम दे कर
यूँ छोड़ चले हैं वो
जिन्हें हम वफ़ादार कहते हैं




thumbnail

सज़ा


Buy Now



दर्द तो अपना है
मज़ा देता है
वो तो पराया है ,
ये स्वर सज़ा देता है

खनक बनकर वो मेरे दिल में
कुछ यूँ मचले,
जैसे की कोई सागर लहर हो
जब भी वो मुस्कुराये,
बहारों  के मौसम आये,
ख़ुशबू
ज़ुल्फों से उठ चली
और फूलों पर भँवरे गुनगुनाए

तकल्लुफ़ मिटाते तो दूरियां भी घटती          
मैं  तुम  होती और  तुम मैं  हो जाते,
ये स्वप्न मज़ा देता है

मैं तुमको शब्दों में बाँध लेती
जो तुम लहरों में सिमट आते,
सारी दुनिया से बग़ावत हम कर लेते,
जो एक बार तुम मेरे हो जाते

दर्द तो अपना है मज़ा देता है
वो तो पराया है , ये स्वर सज़ा देता है