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जीवन धुन


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मोहब्बत के
हसीन नग्में, कई बार मेरे दिल से हैं गुज़रे,
कोई नग्मा
बेहद सुहाना लगा
तो कोई मेरे मन को तड़पा के गया है





किसी एक धुन को
जेहन में उतारा ,
तो कोई जीवन की धुन बन गया है

कोई बोल
मेरे लब छू गया
तो, कोई मुझ में समा सा गया है,

कभी
मेरी खुशियों का साथी बना जो,कभी
मेरे गम को कम कर गया है
ये जादू है सुरों का,
जो हर दिल में बस कर
मन को खुश कर गया है ।

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सार


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मेरा चेहरा नहीं
दिल पढ़ो तो कोई बात है
किताबी बातों में
कोई सार कहाँ रखा है

कभी तो कोई गुलाबी शाम
मेरे भी हिस्से होगी
सपनों में ही जी लूँ
कुछ शब्, कुछ मंज़र मैं
हक़ीक़त की दुनिया में
गुलो-गुलज़ार कहाँ रखा है





है समंदर के धारों पे ज्यों रेत का घर,
शमा के तले ज्यों अधेरा घना है
ढूँढे वही, जो कस्तूरी फिरते लिए है ....
यही तो हकीकत है सारे जहाँ की
ऐसे ही सपने है जो देखे हमने,
पर हक़ीकत की दुनिया में
प्यार कहाँ रखा है !

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सफ़र


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इस सुहाने मौसम में
जब तय किया
एक सफ़र
आप तक पहुँचने का ..

दो गिलहरियाँ भागती देखी ,
एक कौवे का जोड़ा
ढूंढ़ रहा था जैसे कुछ
कुछ गौरैया कलरव करती
अपने घर को, लौट रही थीं
 चहक चहक के, लहक लहक के

हलकी बूंदा बांदी ने
पेड़ों को फिर हरे रंग में रंग डाला
जो ताजी खुशबू
वो मेरे मन को मोह रही थी

ठंडी हवा के ताज़े झोंके,
हरी पत्तियों संग खेल रहे थे
प्रकृति के इस मनमोहक वन में
काश हमारे साथ वो होते
हर पल, प्रतिपल
ये ही कल्पना
मेरे मन को कचोट रही थी
.............

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मुट्ठी भर आकाश समीक्षा - कुमार पंकज द्वारा


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मेरा पहला काव्य संग्रह मुट्ठी भर आकाश - जिसकी समीक्षा की गीतों के सुकुमार कुमार पंकज Kumar Pankaj ने .....

"मुट्ठी भर आकाश"... काव्य-संग्रह पढ़कर अलग रखा तो लगा, कवयित्री/रेडियो जॉकी सुरभि सक्सेना की ये किताब कई मायनों में ख़ास है। 

सुरभि की कवितायेँ बोतल में बंद इत्र की तरह, व्याकरण के कांच की दीवारों में नहीं रहतीं। वो हवाओं में आज़ाद ख़ुशबू की तरह खुले में तैरती हैं। 

सबसे आनंदित कर देने वाली बात ये लगी कि अधिकांश रचनाओं में कवयित्री की गंभीरता नहीं वरन एक अल्हड युवती का नटखटपन, एक चुलबुली लड़की की, रुई-सी उडती शख्सियत...

कोयल के साथ घर के पिछवाड़े नाचने जैसी तमन्ना और एक जोड़ी युवा आँखों की भोली ख़्वाहिशें गुँथी हुई हैं।
ये रचनाएँ ज़िन्दगी से ऐसे ही बेबाकी से बात करती हैं जैसे दो नजदीकी दोस्त आपस में बतिया रहे हों। कई जगह यदि हल्की-फुल्की उदासी उनकी तरफ आ भी जाती है तो वो उस से भी उसी बेलौस अंदाज़ में कह देती हैं-

''मुझको अपने गले लगा लो, मैं मुहब्बत हूँ।'' 

कई जगह उनका पूरा वजूद एक ''खोज'' में तब्दील होता दिखता है।

कभी उनकी रचनाएँ सपनों के किसी अनजान चेहरे की तरफ आकुल-सी दौड़ती हैं तो कभी एक जोगिया-बावरापन पैरों में बांधे खुले मैदानों की तरफ निकल जाती हैं। 

एक मुट्ठी में सारा आकाश कैसे समेटा जा सकता है, ये हर पन्ने से गुज़रते हुए महसूस होता रहा।
जितनी अच्छी वो रचनाकारा हैं, उतनी ही शानदार रेडियो जॉकी भी। 

आल इण्डिया रेडियो पर, किसी किशोरी की चूड़ियों-सी खनकती वो सात्विक आवाज़ मन को हमेशा ऊर्जा से भर जाती है।

मेरी हार्दिक शुभकामनाएं --
कुमार पंकज द्वारा की गयी समीक्षा
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आरज़ू


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कोई हमको देखे,
कोई हमको चाहे,
कोई हमको छू के संदल बना ले
इस मेरी आरज़ू को कोई गले से लगा ले,

सितम तो ज़माने का
देखा हमने भी,
 एक तुम्हीं तो नहीं हो घायल जहाँ के,
दो बोल मीठे कोई हमसे बोले,
कोई हमको शीतल सा मलहम लगा दे

कहाँ से कहाँ तक सफ़र में रहे हम,
कोई मोड़ ऐसा नहीं फिर से आया
कोई हाथ थामे, कोई दे तसल्ली,
कोई हमको अपनी नज़र में बसा ले ...

ज़िन्दगी से बड़ी नहीं है तेरी बेवफाई ,
तुम्हें याद रखें या तुम्हें भूल जाएँ,
इसी कश्मकश में रहते हैं, दिलबर
कोई आके तोड़े सारे ये बंधन,
कोई फिर मुझे मेरी जुस्तजू से मिला दे 
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सुरभित मैं


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एक सूरज
उग रहा,
मेरी भी ज़िन्दगी में..

कुछ बादलों से छिपकर,
ओट में सिमटकर..

एक नन्ही किरण,
छम से ………
मुझ पर भी आ पड़े जो..
आशा यही है मेरी,

रौशन सवेरा होगा

मेरी भी ज़िन्दगी में


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तुम शरारत से ढलो


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अजी प्यार के व्यापार में
हम नहीं है..छोड़िए 
ज़िंदगी एक फ़लसफ़ा है ...
दिल से दिल को जोड़िए

राह से रास्ते बनेंगे
मन से मंजिल की तरफ़
आप भी एक रोज़ तो
दर से दर को मोड़िए ....

रूप से न रंग से है
इश्क़ तेरे संग से है
नाम से मेरे कभी
ये नाम अपना जोड़िये ....

मैं मोहब्बत बनके आऊँ
तुम शरारत से ढलो
दूरियाँ सारी मिटा कर
मन से मन को जोड़िए ।।।

#सुरभि
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रिमझिम बरसती ये बूंदे...


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रिमझिम बरसती ये बूंदे, बादल के रथ पे सोती हैं
नरम मुलायम खुशबू से, सपने नए संजोती है

बहार बनके तू बिखर गयी
प्यार तू बनके सँवर गयी
मन चली एक तमन्ना सी
गुलाब सी तरह निखर गयी

रिमझिम बरसती ये बूंदे, बादल के रथ पे सोती हैं
नरम मुलायम खुशबू से, सपने नए संजोती है


प्यास एक लबो पे उठती है
हलकी सी खलिश सी पलती है
मंज़िल भी है, राह भी तू
शामो शहर मुझसे में रहती है

रिमझिम बरसती ये बूंदे, बादल के रथ पे सोती हैं
नरम मुलायम खुशबू से, सपने नए संजोती है

चाह प्रेम की बगिया में जीवन के गुल बोती है
कविता तो कविता है मन की शैया पे सोती है

रिमझिम बरसती ये बूंदे, बादल के रथ पे सोती हैं
नरम मुलायम खुशबू से, सपने नए संजोती है

#Voice _ Dev negi
Lyrics - Surabhi saxena
Music :- Surendra Singh


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मेरे चंचल कवी हृदय का, एक अफ़साना सुनो सुनो | MERE CHANCHAL KAVI


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#7th Cut - 40 MIN

मेरे चंचल कवी हृदय का, एक अफ़साना सुनो सुनो
मैं गा लूँ, एक गीत प्रिये, तुम एक तराना सुनो सुनो


बाँहों में आ, धड़कनों को सुन
मेरे शेरों में तुम, मेरे गीतों की धुन
जो तू मेरा हुआ मैं रवां हो गया
धड़कता है दिल ये क्या हो गया

मेरे चंचल कवी हृदय का, एक अफ़साना सुनो सुनो
मैं गा लूँ, एक गीत प्रिये, तुम एक तराना सुनो सुनो .....


टूट के मैं सिमट जाऊँ
जो तू बाहों में भर ले
मैं भी पा लूँ एक दिशा
तू निगाहें जो कर ले

मेरे चंचल कवी हृदय का, एक अफ़साना सुनो सुनो
मैं गा लूँ, एक गीत प्रिये, तुम एक तराना सुनो सुनो


तपिश से तेरी पिघल रहा हूँ
इत्र बनके तू बिखर रही है
तेरी बाहों में पनाहों में
चैन पाऊं तेरी राहों में


मेरे चंचल कवी हृदय का, एक अफ़साना सुनो सुनो
मैं गा लूँ, एक गीत प्रिये, तुम एक तराना सुनो सुनो


- सिंगर - देव नेगी
#Music :- Surendra Singh ji

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समर्पण


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माँ और पिता 
आपने मुझे जीवन दिया 
सांसे दी ...

चलना सिखाया, गति दी 
शब्द दिए 
बोलना सिखाया 

अब आप ही बताइये 
आप की दी हुई 
शक्ति को 
आपको ही कैसे समर्पित करूँ ??

मुझे केवल एक ही रास्ता सूझता है 
की आपकी दी हुई शक्ति को 
आपके वारिस तक पहुचाऊं 

बेटी आकर्षिता को एक भेंट 
इस उम्मीद के साथ की 
इस पुस्तक के साथ वह 
अपनी माँ के और निकट आएगी

मेरी दिशा 
मेरी जीवन आधार 
आकर्षिता को 
समर्पित 

#Surabhi 
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मुट्ठी भर आकाश - आमंत्रण पत्र


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"मुट्ठी भर आकाश" भूमिका और समीक्षा - आनंद कृष्ण


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सुरभि का हर रंग
"मुट्ठी भर आकाश" में समाहित है उन रंगों इतनी ख़ूबसूरती से प्रस्तुत करने का हुनर आप में ही है बेहतरीन भूमिका के लिए तहे दिल से धन्यवाद .....
मिट्टी की गंध और रिश्तों के रंग सहेजने के लिए काफी है “एक मुट्ठी आकाश”
कविता वैयक्तिक अनुभूतियों और दैवीय चेतना के संगम से उत्पन्न अनुगूँज है । अनुभूतियाँ प्रत्येक जीवंत और संवेदनशील व्यक्ति की संपत्ति होती हैं और जब इन अनुभूतियों के साथ दैवीय चेतना का समन्वय होता है तब कविता जन्म लेती है । 
यहाँ दैवीय चेतना का अर्थ उस चेतना से है, जो मनुष्य को मनुष्य बनाती है और जिसमें विवेक, विश्लेषण-क्षमता और दृष्टा होने की समझ विद्यमान होती है ।
कविता लिखी या कही नहीं जाती, बल्कि उसका अवतरण होता है; वह नाज़िल होती है । 

रचनाकार अपने सर्वाधिक सक्रिय, और ऊर्जावान क्षणों में इस अवतरित हो रही; नाज़िल हो रही ऊर्जा को ग्रहण करके उसे शब्दों में बांध कर उसे लौकिक और सर्वकालिक रूप प्रदान करता है । इस दृष्टि से कविता जीवन के समग्र स्वरूपों, सरोकारों और जिजीविषाओं का व्यापक और प्रामाणिक दस्तावेज़ होती है और रचनाकार इस अर्थ में एक ऐसा दृष्टा होता है जो समय को, उसके वर्तमान और भविष्य को, सटीक तरीके से विश्लेषित-व्याख्यायित करता है ।

समकालीन समय में जहां एक ओर सामाजिक, आर्थिक, वैयक्तिक और यहाँ तक कि बौद्धिक संत्रास घनीभूत होते जा रहे हैं, अनास्था और अविश्वास के दौर में तब एक सुरमई उजास की धुंधली सी किरण कविता में दिखाई देती है । कविता अपनी दिव्य चेतना से मनुष्य को अपने होने की आश्वस्ति देती है और साथ ही सुबह होने का भरोसा भी दिलाती है ।

युवा कवयित्री सुरभि सक्सेना के प्रस्तुत प्रथम कविता संग्रह “मुट्ठी भर आकाश" में संग्रहीत कविताओं में जीवन के यथार्थपरक प्रतिबिंब अपने पूरे उत्स के साथ परिलक्षित होते हैं

जिनमें मिट्टी की ताज़ा खुशबू और रिश्तों के गाढ़े रंग बहुत खूबसूरती से शब्दों में ढलकर एक ऐसा संसार रचते हैं जो हमारे आसपास ही मौजूद है; हमारे अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा है और जिसे हम हमेशा महसूस कर रहे होते हैं । यह कविता संग्रह संख्यात्मक रूप से सुरभि का पहला कविता संग्रह है किन्तु इसकी रचनाओं में एक ओर अनुभूतियों की प्रौढ़ ऊँचाइयाँ हैं, दूसरी ओर भावनाओं की गहन गहराइयाँ हैं और इनके साथ-साथ संघर्षों व विद्रूपों की सहज स्वीकार्यता के साथ उन पर विजयी होने की उत्कट अभिलाषा है जो इस संग्रह को समकालीन युवा वाङमय में अनिवार्य औरअनदेखा न किया जा सकने योग्य बनाती हैं ।

सुपरिचित पोलिश फिल्म निर्देशक क्रिस्टोफ़ कियेस्लोव्स्की की तीन रंगों की तिकड़ी (नीला, सफ़ेद और लाल) की फिल्मों की भांति सुरभि के रचना संसार में भी प्रेम, अध्यात्म और अपनी मिट्टी से जुड़ाव के तीन रंग हैं । 
कियेस्लोव्स्की की दो फिल्में फ्रेंच भाषा में और एक मूल रूप से पोलिश भाषा में बनी थी, सुरभि की कविताओं की भाषा सामान्य हिन्दी होते हुये कुछ कविताओं की भाषा में उर्दू का (“आरज़ू”, “दिल का हाल”, आदि) और कुछ कविताओं में संस्कृत का प्रभाव (“जीवन काव्य”, “जलद प्रणय” आदि) स्पष्ट दिखाई देता है । 
उसने अपने शब्दों की सृजनात्मक क्षमता पर पूरा भरोसा करते हुये उनसे अपने काव्य विन्यास में अद्भुत शब्द-चित्र गढ़ने का पूरा काम लिया है और अपनी इन कविताओं में आध्यात्मिक गौरव और वर्तमान की विकृतियों के साथ भविष्य का सिंहावलोकन किया है ।

अपने समूचे रचना-कर्म में सुरभि पूरी सतर्कता के साथ आध्यात्मिक गौरव की बात करते हुये भी आत्म-मुग्ध नहीं हुई और ना ही वर्तमान की विकृतियों और आवश्यक चिंताओं को शब्द-बद्ध करते हुये वह आत्म-ग्लानि से ही पीड़ित हुई । उसने अतीत और वर्तमान के आधार पर भविष्य के सुनहरे, आशापूर्ण और रचनात्मक दिनों की कल्पना की है । 

उसकी इस कल्पना में कोई अतिशयोक्ति नही है और ना ही स्वयं की क्षमताओं और सीमाओं से परे जाने की असंभव काल्पनिकता ही है । उसका भविष्य का दर्शन, अतीत की नींव पर खड़े वर्तमान के ढांचे पर आकार
ले रहे सुंदर भवन की तरह है । “स्वामी विवेकानंद”, “घनश्याम”, “मुरली मनोहर”, “मेनका”, “नीलकंठ” सुरभि की वे कवितायें हैं जिनमें उसकी गहन दृष्टि से भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सामर्थ्य व पराकाष्ठा के दर्शन होते हैं ।
सुरभि की कवितायें पढ़ते हुये अनायास ही चिली की सुपरिचित कवयित्री गैब्रीयला मिस्तरल की कविताओं का शिल्प और भाव-भूमि याद आती है । अपनी कविता “सी नोम्ब्र ए ओए” (हिज़ नेम इज़ टुडे) में वे कहती हैं :

"हम बहुत सी गलतियों और
बहुत से पापों के लिए शर्मिंदा हैं ।
पर
हमारा सबसे घृणित अपराध है
बच्चों का परित्याग
और इस प्रकार जीवन की गतिशीलता को अनदेखा करना ।
बहुत सी चीज़ें
हमारा इंतज़ार कर सकती हैं ।
पर बच्चे नहीं-
अब वह समय आ गया है
जब उसकी हड्डियाँ बनने लगी हैं
उसकी रगों में खून दौड़ने लगा है
और उसकी अनुभूतियाँ जागने लगी हैं ।
उसे हम
भविष्य के लिए नहीं टरका सकते-
उसका नाम “आज” है । 
(भावानुवाद : आनंदकृष्ण)

सुरभि की अनेक भोली-भाली, मासूम कविताओं में भी यह “आज” विभिन्न रूपों में बिखरा हुआ है । कहीं वह “पापा की बेटियाँ” “अदा” और “कोयल” कविताओं में एक छोटी सी बच्ची बन कर उछल-कूद करना चाहती है तो वहीं “आकर्षिता” कविता में अपनी बेटी के रूप में अपना बचपन फिर से खोजते हुये वात्सल्य में डूबती-उतराती है ।

सुरभि ने अपनी कविताओं में प्रेम को पूरी उष्णता के साथ जिया है । उसने बेबाकी से अपनी बात कही है । प्रेम के अनकहे और अनछुए पहलुओं पर भी उसने ईमानदारी से कलम चलाई है । प्रेम में आकंठ डूबी नायिका के आनंद के मदमाते क्षणों को और वियोग की तपती रेत सी पीड़ा को उसने बड़ी बारीकी से उकेरा है। 
सुपरिचित लैटिन अमरीकी कवि पाब्लो नेरूदा के एक गीत की पंक्ति है : “कितना संक्षिप्त है प्यार और विछोह की अवधि कितनी लंबी” । नेरूदा प्रेम के, विशेष रूप से वियोग के गायक थे और वैसी ही अनुभूतियों के साथ सुरभि नए शब्द-बंधों को रच रही है

उसका प्रेम विरहातुर है किन्तु फिर भी वह “दुख की बदली” नहीं बनी । उसने विछोह के दर्द को सहज रूप में स्वीकार तो किया किन्तु किसी सहानुभूति या दया की उम्मीद किसी से नहीं की । वह अपने मूलभूत अधिकारों के प्रति सचेत रहते हुये जीवंत आत्मीय लगाव और ऊर्जावान हंसी के साथ अपने समग्र जीवन की पड़ताल करती है ।

सुरभि नैसर्गिक कवयित्री है । वह केवल कवयित्री ही हो सकती थी जो वह हुई । समकालीन वाङमय में जिस स्त्री विमर्श को ले कर हाय-तौबा मची हुई है, उसके सधे हुये, स्पष्ट और व्यावहारिक स्वर सुरभि की रचनाओं में सहज रूप से विद्यमान हैं ।

अपनी कविता “हस्ती है मेरी”
में वह अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती है :
एक तुम तक नहीं था रास्ता मेरा
एक तुम ही नहीं थे मंज़िल मेरी
कुछ और भी मैं पा सकती थी
एक दौर नया रच सकती थी
इसी कविता में आगे वह कहती है :
तुम मेरे लिए करते भी क्या.....
जब अपने लिए कुछ कर पाये ना...
हाथ में जैसे रेत भरे वक़्त तुम्हारा छूट गया
मेरे आगे रखा हुआ वो शीशा भी टूट गया ....
इतनी तो समझ मुझमें भी थी
एक नई इबारत लिख सकती थी ।
हाथ बढ़ा, पाना है बहुत कुछ अभी
जिसके लिए हस्ती है मेरी........

सुरभि सक्सेना की रचना-धर्मिता एक निश्चित दिशा और विचार धारा के साथ निरंतर विकास कर रही है । उसकी कविता अपनी शक्ति, सृजनशीलता, मन और आत्मा को पूरी शिद्दत के साथ रूपायित कर देने को बेचैन प्रतीत होती है । 
यही बेचैनी दैवीय चेतना के अवतरित होने, नाज़िल होने की पूर्वाशंसा है । समय का, सच्चाई का और विद्रूपों का सामना करते हुये ये कवितायें एक स्पष्ट विकास-धारा की आश्वस्ति देती हैं । इनमें जूझने का माद्दा है, संघर्ष करने की शक्ति है और जीतने का हौसला भी; इसलिए इनको किसी नारेबाजी की ज़रूरत नहीं- । 

इन दिनों जब रिश्तों की गर्माहट कम होती जा रही है तब रिश्तों की अहमियत समझने वाले सुरभि जैसे बिरले रचनाकारों का पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ सक्रिय होना शुभ संकेत देता है । समकालीन दौर को समझने के लिए.....

सुरभि सक्सेना जैसे युवा रचनाकारों को पढ़ा गुना जाना चाहिए । उसका यह पहला कविता संग्रह समाज को नए तरीके से चिंतन करने का अवसर देगा ऐसी आशा की जाना चाहिए ।
सुरभि को वरिष्ठ गीतकार श्री वीरेंद्र मिश्र की चार पंक्तियों के साथ शुभकामनायें :
है नहीं प्रतिबद्ध जो उस दर्द का कैसा श्रवण-?
साधना भर रह गया है गीत का मौलिक सृजन ।
शिखर पर आलोचना है, केंद्र में संपादकी-
कौन समझे आज मन की अश्रुकंठी गायकी-?


आनंद कृष्ण जी द्वारा की गयी भूमिका और समीक्षा
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रेडियो से जुड़ाव - अपनी बात


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जीवन में एक ही शौक मेरे मन के क़रीब रहा जो मुझे नानी से मिला वह था रेडियो पर पुराने गाने सुनने का शौक, यही शौक मुझे रेडियो से जोड़ कर रखता है,

पुराने गीत, वो दिल को छु लेने वाले बोल, वो संगीत मेरी तन्हाई का साथी है, पुराने गीतों के साये में कुछ पुरानी यादें जो कशिश बन कर मेरे आसपास रहती है

मैंने वर्ष 2000  से जबलपुर रेडियो के साथ अपने सफर की शुरुवात की, यह सफर मुझे दिल्ली के FM GOLD तक ले आया ..

छोटे शहर से एक बड़े शहर तक का
ये सफ़र जहाँ खुशनुमा रहा तो वहीँ दुखों ने मेरा रास्ता भी रोका....

लेकिन हार किसको माननी थी? न मैंने हार मानी है, न मैं हार मानूँगी, बस चल रही हूँ मंजिल की तलाश में .. क्योंकि किसी ने सच कहा है की चल रहे हैं हम तो समझों ज़िंदा है हम

आवाज़ की दुनिया से जुड़कर, अपने श्रोताओ और दोस्तों से बातें करके बहुत अच्छा लगता है और यही महसूस होता है कि

मेरी मंज़िल और मेरा पड़ाव
बहुत नज़दीक है
बहुत सीखा रंजो ग़म से
ये ज़िन्दगी मेरी सखी सरीख है ....

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अपनी बात


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सुरभित हूँ मैं सुरभि हूँ
विश्व धरा पर फैली हूँ
चंद्र किरणें ज्यूँ धरा पर
मैं पुष्प पुष्प में महकी हूँ
कलियों संग भँवरे
राधा संग घनश्याम
व्यापक आकाश की मैं सहेली हूँ....

तब शायद पहली बार मैंने अपने आप को पहचाना, पापा की ऊँगली थाम कर चले, माँ के अंचल में खूब खेले, वो दिन अब कभी वापस नहीं आएंगे, पर माँ
और पिता का आशीष हमेशा मेरे साथ रहेगा

दुआओं में हमें भी शामिल रखना
सदाओं में हमें भी हाज़िर समझना


दर्द हमेशा एक मित्र की तरह रहा, वो दर्द कब मेरे क़लम के साथ जुड़ गया पता ही नहीं चला, आज लिखने बैठी तो यादों के मौसम और वो ज़ख्म हरे हो उठे

यादो के मौसम लौट चले
अब ज़ख्म हरे हो जायेंगे
ये दिल तुमको माँगेगा
हम ख़ुद को कैसे मनाएंगे ?

जिस रोज़ मेरी ऊँगली पिता ने छोड़ी, वही से संघर्ष और कठनाइयों ने मेरा दामन पकड़ लिया और तनहाई मेरी सखी सरीखी हो गयी पर शुक्र है उस ऊपर वाले का जो मेरे साथ रहा - हर पल हर दम

रहमत बख्श या मौला मैं ग़रीब
ग़रीब नवाज़ मदद
तू ही ख़ुदाया तू ही नूर
सब तुझ में समाया

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अपनी बात


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मैं सुरभि हूँ... अपने नाम की तरह महकती, मचलती अपने माँ पापा के आँगन में उतरी, बचपन का हर दौर सुख से बीता.. पर एक कसक, एक फांस सी हमेशा चुभती, भला सुरभि का क्या परिचय हो सकता है ?

न वो दिखाई देती है न उसे छु कर महसूस किया जा सकता है और न ही सहेज कर रखा जा सकता है..

कभी कभी सोचती थी की मेरे माता-पिता ने क्या सोच कर मेरा नाम सुरभि रखा होगा?

फिर धीरे धीरे समझ बढ़ी, शब्द बढ़े, अनुभव बढ़ा, अनुभूति गहन-गंभीर हुई तब क़लम से कुछ शब्द यूँ ही फिसलते चले गए 
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रिमझिम बरसती ये बूँदें - Female version


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रिमझिम बरसती ये बूँदें बादल के रथ पे सोती हैं
नरम मुलायम, खुशबू से सपने नए सँजोती हैं। ... 
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उदासियों का सबब भी तू है


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उदासियों का सबब भी तू है
खता तू है, सज़ा तू है, जीने की वजह भी तू है


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ये जुगनूं सी यादें


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ये जुगनूं सी यादें, घनघोर अँधेरा है
तेरी बाँहों के घेरे में, संदल का बसेरा है

एक तेरी याद दिल में, तू मचलती है लहर सी !
लगा फिर दिल पे, क्यूँ तेरी बातों का पहरा है !!!
तेरी बाँहों के घेरे में, संदल का बसेरा है  ....


एक नूर तेरे रुख़ पे, तू संभलती है फ़लक सी
(फ़िदा ) फ़रेबी हो रहा ये दिल, बड़ा ये राज़ गहरा है !!!
तेरी बाँहों के घेरे में, संदल का बसेरा है  ....


हर पल मेरे मन में, तू बिखरती है धनक सी
(जाना) जहाँ इस दर्द के सहरा में, (कभी ) कोई न ठहरा है  ”
तेरी बाँहों के घेरे में, संदल का बसेरा है  ....



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मुलाक़ात हुई


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कुछ पुरानी यादों से मुलाक़ात हुई

नम थी आँखें, जब दिल से बात हुई

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जूनून बनकर हावी रहा


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वो जूनून बनकर हावी रहा
हम सुरूर बनके बरस गए .....


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इसे आज़ाद रहने दो !!!


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ना चाहत बादलों की, न है ख्वाहिश चाँद तारों की 

बस एक सुरभित तमन्ना है, इसे आज़ाद रहने दो !!!

शम्मा की तरह, जब तू पिघलती है,
मैं परवाने सा जलता हूँ
तुझे पाने के लिए, न जाने कौन से रास्तों पे चलता हूँ 
बस एक सुरभित तमन्ना है, इसे आज़ाद रहने दो !!!


मेरी मोहब्बत को, दिल से लगा कर,
सुनो तुम चली आना थाम के बाँह,
शरारत भरी आँखों से ज़रा ज़रा तुम मुस्कुराना
 बस एक सुरभित तमन्ना है, इसे आज़ाद रहने दो !!!

 तुम चली आना, जब धूप सर्दी की, गुलाबी - गुलाबी सी हो जाये
 छू ले फिर, जैसे बदन की एक महक तेरी, उस बंद कमरे से आये

 बस एक सुरभित तमन्ना है, इसे आज़ाद रहने दो !!!

 
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खुशियाँ हज़ार दो


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अपना कहो मुझे और खुशियाँ हज़ार दो
यूँ ही किसी ग़रीब की किस्मत सँवार दो

अपना कहो मुझे और खुशियां हज़ार दो
यूँ ही किसी गरीब की किस्मत सँवार दो ....

दीवाना बन गया हूँ तेरी तिरछी नज़र का
पलकें झुका, झुका के, दिल को क़रार दो ....

जीता हूँ तेरे प्यार में, खामोश हूँ मगर
कभी तो मेरे प्यार का, सदका उतार दो ...

महका हुआ बदन तेरा, ऑंखें है मरमरी
छूकर मुझे ऐ गुलबदन, मुझको निखार दो ...

सुरभि

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कुछ पुरानी, यादों से


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कुछ पुरानी, यादों से, मुलाक़ात हुई
नम थी आँखें, पर दिल से  (दिल की) बात हुई

हर शै, याद तेरी ले आती ,
(इस) मेरे दिल को है तड़पाती,
हर आलम, महका लगता है, क्या उल्फ़त की शुरुआत हुई !!! ooo hoo hoo aaa ahhnn ahmmm

फिर एक दर्द उठता है उभर,
जैसे हो ख़ुशबू का सफ़र
तू (ऐसे) सिमट आ बाँहों में, जैसे ख्वाबों में मुलाक़ात हुई !!! ooo hoo hoo aaa ahhnn ahmmm

बरसों मेरे ख्वाबों में,
तू रहा रौशनी बनकर
नींद कहाँ अब आँखों में, हर लम्हा मेरी खुद से ही बात हुई !!!!! ooo hoo hoo aaa ahhnn ahmmm




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मेरे गीत - रिमझिम होगी बरसात सनम


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कह दी दिल की हर बात सनम ... अब रिमझिम होगी बरसात सनम तुम जानो या रब जाने
रिमझिम होगी बरसात सनम ....अब तुम जानो या रब जान

आँखों के रास्ते, तुम दिल में उतर रहे हो
उसपे ये चांदनी रात सनम अब तुम जागो और हम जागे !!!!

फूलों सी हंसी तेरी, मेरे मन को भा रही है
उसपे हाथों में हाथ सनम अब तुम मानो और हम माने !!!

हाल दिल कहती है तू, आँखों ही आँखों में
क्यू दिल में रह गयी हर बात सनम अब तुम जानो और रब जाने !!!

इश्क़ का रोग लगा हैं, तेरा ही जोग लगा हैं
पर सूनी सूनी हर रात सनम अब तुम जागो और हम जागे !!!
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कुछ पल मेरे अपने


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मैंने हर तीर बचा रखा है,
तू जो सामने आये तुझको दिखलायूं हर घाव हरा रखा है..

मलहम तो बहुत मिल जायेंगे..पर ज़ख्म कहाँ से लायेंगे ...
जब सामने तुम आ जाओगे..
ये सोच हर दर्द को सीने से लगा रखा है...
तू जो सामने आये, तुझको दिखलायूं हर घाव हरा रखा है..

कितनी उल्फ़त से ,बड़ी शिद्दत से निभाया हर रिश्ता हमने
सालों तेरे इश्क की उम्मीद में घुटते रहे,मरते ही रहे ...
अपने प्यार की मईयत को अब तो हाथों में उठा रखा है ...
तू जो सामने आये, तुझको दिखलायूं हर घाव हरा रखा है..

एक मंजिल कहो या कह लो मोड़ उसे,
या फिर कह लो मोहब्बत का तोड़ उसे
सब पार करके देख लिया,हर ख़ूब-सूरत रिश्ते को दूर होते देख लिया ....
इश्क़ की आग ने दिल को अब तो नफ़रत से भरा रखा है ...
तू जो सामने आये, तुझको दिखलायूं हर घाव हरा रखा है...

सुरभि  
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अल्हदा रंग


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जाओ कहाँ जाओगे तुम,
मेरी परछाई वहाँ पाओगे तुम ,
दूर रहना मुमकिन ही नहीं,
मेरी सदाओं को सुन पाओगे तुम..

एक तेरे लिए हमने, 
किसी रोज़ तोड़ के,
घर छोड़ के चलना सीखा 
मुझ से अलग, कोई ताना बाना नही बुन पाओगे तुम ...
जाओ कहीं भी, किसी ओर, 
हर बार ....मेंरी सदाओं को सुन पाओगे तुम..

रंगीन ज़माने के हसीं तसब्बर,
कुछ ख़्वाब सलोने 
मेरे भी हिस्से आये 
कुछ पल तेरे साथ, मैं भी जी लूं क्या ये नहीं चाहोगे तुम ...
मेरे आशियाने के पंछी होकर,अनजान नगर कैसे रह पाओगे तुम ....

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रणदीप हूडा जी के साथ RJ सुरभि


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एक माँ


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RJ - सुरभि


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सुरभि


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